औरत, आदमी और छत , भाग 9
भाग,9 औरत आदमी और छत
चंद क्षणों में ही मिन्नी बाहर आ गई।
अरे नीरजा आओ न अंदर आओ। घर में सब ठीक हैं,आन्टी अंकल?
.बिल्कुल और माँ ने तेरे लिए आलू पूरी अचार और लड्डू भेजे हैं।
माँ वो कैसे जानती हैं मुझे?
मेरे माध्यम से डियर।
अरे हाँ नीरजा रीतिका आई हुई है।
अच्छा कब आई वो ,तुम गई थी तब तो तुम ही लेकर आई होगी।
हाँ यार दीवाली भी नजदीक हैऔर मुझे भी क ई दिनों से बड़ा अजीब सा सूनापन लग रहा था उसके बिना।
पर तुम तो यहाँ हो फिर वो अकेली वहाँ प र?
अपने हॉस्टल में एक आंटी छोटे बच्चों के लिए क्रेच भी चलाती हैं, वो जहाँ झूले है न उसके सामने वाले कमरे में।उन्ही के पास छोड़ कर आती हूँ। वैसे वो समझ दार भी है , मेन गेट से बाहर नहीं जायेगी।न ही किसी अजनबी के साथ जायेगी।
तुम्हारी बेटी है न समझदार तो होगी ही।
नहीं नीरजा डियर मेरी बेटी होने से समझदार नहीं है वो परिस्थितियों ने बना दिया है उसे समझदार।
तभी चौकीदार दोकप काफी ले आया था।
तुम.हॉस्टल कितने बजे जाओगी।
तीन बजे तक चली जाँऊगी जरूरत हुई तो शाम को फिर आ जाऊँगी।
मैंने अपने बैग मिन्नी को दे दिए थे,उसने कहा था ठन्डे मौसम में सब्जी खराब नहीं होती वैसे वो जाते ही गर्म भी कर देगी।
मिन्नी ने चौकीदार से रिक्शा बुलवा दी थी। मैं अपने आफ़िस पहुंच गई थी
लंच स्टेनो दीदी के साथ ही खाया था।
छुट्टी के वक्त रही सोच रही थी कि रीतिका के लिए क्या लेकर जाऊं। मैं विचारों में ही ,हॉस्टल पहुंच गई मैने देखा क्इ गेस्टरूम के बाहर बगीची में एक छोटी सी फूलों जैसी प्यारीऔर सुंदर लड़की फूलों को सहला रही थी। कहीं यही तो रीतिका नहीं, क्योंकि हमारे हॉस्टल में तो किसी के भी इतने छोटे बच्चे नहीं है।
मैं उसके पास ग ई थी एकदम गोरा गोल मटोल चेहरा, नाक आँख जैसे किसी शिल्प कार ने बड़े जतन से गढ़े हों। उस की बड़ी बड़ी आँखें बिल्कुल मिन्नी जैसी थी। मिन्नी के बालों का रंग गहरा काला था, पर इस बच्ची के बाल बिल्कुल भूरे थे।।ये तो बिल्कुल जापानी गुड़िया थी।
बेटीआप रीतिका हो ना।
आप को कैसे मालूम।
मैं निरूत्तर हो गई थी।
आप कौन हैं।
मैं नीरजा हूँ,पर आपकी मंमी कहाँ है।
मंमी हमारे कमरे में हैं,वो मेरे लिए कुछ बना रही हैं।
क्या बना रही हैं?
वो सर प्राईज है। आप को मंमी से मिलना है क्या, आ जाओ मेरे साथ।
वो ठुमक ठुमक कर चल रही थी सीढियों की तरफ।
मैं उस के पीछे सीढी़ चढ़ती हुई ये सोछ रही कि कैसा इंसान होगा वो जो इतनी प्यारी बेटी और पत्नी से दूर हो गया होगा।
मंमा कोई आया है मिलने।
आती हूँ।रसोई से मिन्नी की आवाज़ आई थी।
अरे रीतिका ये तो तुम्हारी मौसी हैं। नमस्ते करो।
नमस्ते मासी ,उस की दो प्यारी प्यारी हथेलियां जुड़ ग ई थी।
अरे मेरी जान मे ने उसे बाहों में भर लिया था।
मिन्नी तुम हमारी शहजादी के लिए क्या सरप्राइज बना रही हो भ ई।
तो इसने तुम्हें बता भी दिया। खीर बना रही हूँ मैं अपनी इस गिटपिट के लिए।मिन्नी ने उसे स्नेह से देखा था।
अच्छा रीतिका तुम लड्डू खाओगी बच्चा।
लड्डू तो हैं ही नहीं।
लड्डू तो बहुत हैं पर पहले आप को हमें प्यार करना होगा।
इधर आओ, मासी, प्यार करूं।
अरे वाह, चलो भ ई हम ही आ जाते हैं। मैने रीतिका को एक लड्डू दे दिया था।
नीरजा तुम भी आ जाओ, खाना खा लेते हैं।
तुम ने भी नहीं खाया अभी तक।
अरे कहाँ आते ही इसकी खीर वीर में लग गई,फिर सोचा सभी साथ ही खायेंगे।
मिन्नी ने खाना गर्म कर लिया था, ठंडी पूरी,गर्म सब्जी और अचार बहुत अच्छा लग रहा था।
रीतिका तुम भी खाना खा लो बेटा।
नहीं मुझे लड्डू ही अच्छा लग रहा है।किस ने बनाया है आप ने।
मैंने नहीं बच्चे, नानी ने बनाया है।
किसकी नानी ने।
तुम्हारी नानी ने।
मेरी भी नानी है मंमी?
अगर नीरजा तुम्हारी मासी हैं तो इनकी मंमी तुम्हारी नानी हुई ना।
नानी कैसे कपड़े पहनती हैं नीरजा मासी।
जीन्स शर्ट,खाना खाते खाते मेरी हँसी छूट गई थी।
सच मंमी?
हम्म।
क्यों तुम को जींस शर्ट वाली नानी अच्छी नही लगती क्या। मैंने रीतिका से पूछा था।
नहीं जी वो तो बोहत अच्छी हैं। हमारी नवीता मैम और रोजा मैम भी जीन्स शर्ट पहनती हैं और उनकी पाकेट में से हमें वो टाफी देती हैं।
रीतिका अब थोड़ा सो जाओ, मैं आफिस़ हो आती हूँ।। मिन्नी ने कहा था।
कुछ काम रह गया है क्या मिन्नी।
अरे एक जरुरी खबर थी वो भेज कर आधे घन्टे में वापस। आती हूँ।।
ठीक है न तब तक मैं और रीतिका यहीं खेलेंगे।
अरे हाँ नीरजा कन्नु के लिए भी पूरी सब्जी रखी है उसे भी दे देना।
ठीक है मैं दे दूंगी ।
मैऔर रीतिका बहुत देर तक खेलते रहे। फिर मैने रसोई का काम निपटा कर कपड़ें ही बदले थे कि रीतिका बोली, मासी मैं नीचे खेल लूं झूले पर ।
चलो मैं भी चलती हूँ। हम दोनो नीचे आ गए थे।
हमें लगभग दस ही मिनट हुए थे कि झूले के पास खेलती हुई रीतिका भागती हुई गैस्ट रूम की तरफ भागी थी। मै भी उस के पीछे गई तो देखा वो वीरेन्द्र की गोद में सवार थी। वो दोनों ही जैसे मेरी उपस्थिति से बेखबर थे।
तू कब आयी,किसके साथ आयी।वीरेन्द्र उसे दुलार रहा था।
मुझे तो बोहत(बहुत) दिन हो ग ए।
बोहत दिन कैसे हो ग ए बेटा मैं तो सिर्फ एक सप्ताह के लिऐ ही बाहर.गया था और तब तक तो आप आए नहीं थे।
नहीं जी मै तो मंमा के साद आई हूँ।मंमा दीवाली पर ढेर सारी मिठाई दिलायेंगी मुझे।
अच्छा. जी मिठाई तो हम अभी ले आते हैं, फिर दीवाली पे भी ले आयेंगे।
चलो चलते हैं।
उसका चेहरा जैसे ही पलटा,उसकी नजर मुझ पर पड़ी।
मासी ये वीरेंद्र अंकल हैं।मैं इन के साथ मिठाई लेने जा रही हूँ।
वीरेंद्र भी पलटे थे,और हाथ जोड़ दिए थे।मिन्नी नहीं है शायद।
जी बस आने ही वाली होगी।
खैर मैं इस को लेकर बाजार जा रहा हूँ। आप बता देना, हो सकता है वो रास्ते में ही मिल जाए।
पर ये आपको परेशान कर देगी।
मुझे और ये परेशान, उन के चेहरे फर हल्की सी मुस्कान आ गई। वो रीतिका को लेकर चले गए थे। वीरेंद्र. ने वही स्वेटर पहना जो मिन्नी ने कहा था किसी और के लिए है।
क्रमशः
कहानी,औरत आदमी और छत।
लेखिका, ललिताविम्मी।
भिवानी, हरियाणा